नववर्ष के उपलक्ष में ऑनलाइन संगोष्ठी में अटल जी की कविताओं का हुआ गायन।


जन दृष्टि (व्यवस्था सुधार मिशन) द्वारा गूगल मीट एप के माध्यम से आयोजित नूतन वर्ष अभिनंदन कार्यक्रम के अंतर्गत प्रतिभागी शिक्षकों द्वारा भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की कविताओं एवं प्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफी के गाए हुए गीतों का गायन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता जन दृष्टि के संस्थापक हरि प्रताप सिंह राठौड़ एडवोकेट ने की मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षा सागर फाऊंडेशन गुजरात के अध्यक्ष शैलेश प्रजापति तथा शिक्षक दर्पण बिहार के संस्थापक मोहम्मद नुरुल होदा उपस्थित रहे।
सर्वप्रथम उत्तराखंड से सरोज डिमरी ने सरस्वती वंदना तथा बदायूँ से मधु प्रिया चौहान ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया।

मुरादाबाद से पल्लवी शर्मा सुनाया -

मौत से ठन गई ,मौत से ठन गई
जूझने का भी मेरा इरादा न था,
रास्ता रोककर वो खड़ी हो गई

प्रतिभा त्रिपाठी छत्तीसगढ़ ने गायन किया -

 ये रातें ये मौसम नदी का किनारा

प्रेम सखी कुमारी, बिहार ने पढ़ा -

"सच्चाई यह है कि केवल ऊँचाई ही काफी नहीं होती, 
सबसे अलग- थलग, 
परिवेश से पृथक
अपनों से कटा- बंटा
शून्य में अकेला खड़ा होना
पहाड़ की महानता नहीं मजबूरी है। 

नवीन जैन राजस्थान ने पढ़ा -

सुशासन जिनका, नारा था l
जिन्हें देश जहां से प्यार था l

गायत्री मिश्रा छत्तीसगढ़ ने सुनाया -

आने से उसके आए बहार,
जाने से उसके जाए बहार बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा।
-
पूर्वी चंपारण बिहार से नुरुल होदा ने सुनाया - 

शादाब ओ शगुफ्ता कोई गुलशन ना मिलेगा ।
दिल खुश्क रहा तो कहीं सावन ना मिलेगा ।
तुम प्यार का सौगात लिए घर से तो निकलो ।
रस्ते में तुम्हें कोई दुश्मन ना मिलेगा ।

देवेश कुमार अवस्थी मैनपुरी ने सुनाया - 

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएं।

समी अख्तर पूर्वी चंपारण बिहार ने सुनाया -

दुनिया का इतिहास पूछता
 रोम कहाँ यूनान कहाँ
घर-घर में शुभ अग्नि जलता 
वह उन्नत ईरान कहाँ
दीप बुझे पश्चिमी गगन के
व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा
किंतु चीर कर तम की छाती
 चमका हिंदुस्तान हमारा ।

गोरखपुर से राज्य पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक मनोज कुमार मिश्रा ने सुनाया -

बाधाएँ आती हैं आएं,
घिरें प्रलय की घोर घटाएं ।
 पावों के नीचे अंगारे,
सर पर बरसे यदि ज्वालाएँ ।
निज हाथों में हंसते-हंसते 
आग जलाकर चलना होगा ।
 कदम मिलाकर चलना होगा।

डॉ अलका गुप्ता,' प्रियदर्शनी' ने सुनाया -

आज सिंधु में ज्वार उठा है ।
नगपति फिर ललकार उठा है 
कुरुक्षेत्र के कण -कण से फिर
पाँचजन्य हुंकार उठा है ।

 लखनऊ से अमिता सचान, बदायूं से प्रिया रस्तोगी ने मो ० रफी के गीत सुनाए, जम्मू कश्मीर से आलिया थापा ने भी गीत प्रस्तुत किया।

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